वेलकम टू कराची लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
वेलकम टू कराची लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शुक्रवार, 29 मई 2015

वेलकम टू कराची- कॉमेडी और एक्शन के भंवर में फंसी कहानी


इस वीकेंड पर अगर आप कोई कॉमेडी फिल्म देखने की सोच रहे हैं और कॉमेडी के नाम पर अगर आपके जेहन में वेलकम टू कराची का नाम आ रहा है तो प्लीज उसे अपने जेहन से निकाल दें। वेलकम टू कराची में आपको न तो कॉमेडी मिलेगी न ही एक्शन । जैकी भगनानी की पिछली फिल्मों की तरह ये फिल्म भी आपको निराश ही करेगी। हां अगर आप अरशद वारसी के लिए ये पिक्चर देखना चाहते हैं तो देख सकते हैं लेकिन फिल्म आपको निराश ही करेगी।

चित्र गूगल से
कहानी - फिल्म की कहानी शुरू  होती है गुजरात के जामनगर से । शमीम (अरशद वारसी) का नेवी से कोर्टमार्शल हो चुका है और वो केदार पटेल (जैकी भगनानी) के साथ मिलकर जैकी के पिता का बोट चलाता है। दोनों जिगरी यार हैं।  केदार अमरिका जाना चाहता है। इस काम में शमीम उसकी मदद करने की बात कहता है। बिना वीजा के वो लोग समुद्र के रास्ते अमरिका जाने का प्लान बनाते है। दोनों मिलकर एक दिन बोट लेकर निकल पड़ते हैं। समुद्र में आए तूफान के कारण इनकी बोट पाकिस्तान के कराची शहर के बीच पर पहुंच जाती है । इनके पहुंचने के कुछ देर बाद ही वहां बम ब्लॉस्ट होता। शमीम का पर्स बीच पर ही छूट जाता है जो आईएसआईएस की ऑफिसर लॉरेन गॉटलिब  के हाथ लग जाता है। जो इन दोनों को खोजने लगती है। पाकिस्तान से भागने के चक्कर में ये आतंकियों के हाथ लग जाते हैं। इनकी गलती से आंतकियों के कुछ ठिकाने नष्ट हो जाते हैं और वो वीडियो पाकिस्तानी मीडिया तक पहुंच जाता है। पाकिस्तानी सरकार आगामी चुनाव में फायदे के लिए इन दोनों को जबरन पाकिस्तानी बनाकर देश का हीरो बना देती है। आगे ये दोनों वहां से कैसे निकलते हैं ? इनके साथ क्या होता है ? इनका राज खुलता है कि नहीं ? कैसे इनको लेकर राजनीति की जाती है ? कहानी इसी पर आधारित है।  डायरेक्टर आशीष मोहन कहानी को बांधे नहीं रख पाते। पहले हाफ तक तो पूरी पिक्चर बोरिंग लगती है। पिक्चर शायद एक्शन थ्रिलर होती तो ज्यादा अच्छा होता।

ऐक्टिंग- बात अगर ऐक्टिंग की करें तो जैकी भगनानी ने जरुर अच्छा काम किया है। पूरी फिल्म में उन्होंने  कम समझ और अपने में मस्त रहने वाले किरदार को अच्छे से निभाया है
। हां कहीं-कहीं उनकी नामसझी ओवर एक्टिंग लगने लगती है। अरशद वारसी आशा के अनुरूप इस बार छाप छोड़ने में असफल साबित हुए हैं। कई बार उनके एक्सप्रेशन ने उनके डायलॉग का साथ नहीं दिया। कई बार उनसे ओवर एक्टिंग भी करवाई गई।लॉरेन गॉटलिब को फिल्म क्यों रखा गया है ये बात समझ के परे है। फिल्म बिना हिरोइन के भी बन सकती थी जब उनसे कुछ करवाना ही नहीं था। अयूब खोसो, इमरान हसनी छोटे रोल में भी जमे हैं। पाकिस्तानी एक्ट्रेस कुबरा खान को भी फिल्म में देखा जा सकता है।  लेकिन एक्टिंग  के लिए नहीं।   

डायलॉग्स- कुछ खास नहीं है। एकाध को छोड़कर। बॉर्डर हमेशा छोटे होते हैं दूरियां ज्यादा होती हैं, बॉर्डर पर तार नहीं है, चोर तो दोनों ओर रहते हैं। ये कुछ डायलॉग्स है जो नोटिस किए जा सकते हैं।

म्यूजिक- दारू की लोरी को पहले ही काफी एन्टेशन मिल चुका है। संगीतकार रोचक कोहली और और जीत गांगुली का काम फिल्म को देखते हुए अच्छा है।  इसके अलावा शकीरा गाने पर आइटम सॉन्ग भी ठीक है।

देखें की नहीं- अगर आपके पास अतिरिक्त समय और रुपए हों तो एक बार फिल्म देखी जा सकती है, अन्यथा नहीं।

रेटिंग- 2/5